सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता पर 5 लाख रुपए का जुर्माना लगाया। याचिकाकर्ता को फाइन लगाते हुए उसकी जनहित याचिका को पब्लिसिटी पाने का ओछा तरीका बताया गया है। याचिकाकर्ता ने कहा कि बॉम्बे हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस की शपथ दोषपूर्ण है और चीफ जस्टिस की अगुआई वाली बेंच ने कहा कि हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस को गवर्नर शपथ दिलाते हैं और इसके बाद ही उनकी नियुक्ति होती है।
याचिकाकर्ता पर 5 लाख रुपए का जुर्माना लगाने पर बेंच ने कहा कि ये जुर्माना याचिकाकर्ता को 4 हफ्ते के अंदर भरना होगा। याे याचिका अशोक पांडे द्वारा दाखिल की गई थी। उनका कहना था कि बॉम्बे हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस को दोषपूर्ण शपथ दिलाई गई है। उन्होंने संविधान की तीसरी अनुसूची का उल्लंघन करते हुए शपथ के दौरान अपना नाम लेने से पहले ‘मैं’ शब्द नहीं कहा।
यह मामला एक गंभीर नोटिस मामला है जिसे सुप्रीम कोर्ट ने तुरंत परखने का फैसला किया है। याचिकाकर्ता ने यह दावा किया है कि चीफ जस्टिस की शपथ देने की प्रक्रिया गलत थी और इसलिए उनकी नियुक्ति भी ग़लत है। इसके परिणामस्वरूप, याचिकाकर्ता पर 5 लाख रुपए का जुर्माना लगाया गया है।
यह मामला बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि यह सुप्रीम कोर्ट के सिद्धांतों और न्याय प्रणाली के प्रति एक मेहनती याचिकाकर्ता के विरुद्ध है। इस फैसले से एक संदेश जाता है कि न्यायिक प्रणाली सख्ती से याचिकाकर्ताओं को निर्धारित नियमों और शपथों का पालन करने की कार्रवाई करेगी।
इस मामले में याचिकाकर्ता ने अपना कहना दिया कि वे बॉम्बे हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस के खिलाफ हैं क्योंकि उनकी शपथ दोषपूर्ण थी और उन्होंने अपना नाम लेने से पहले मंगल नहीं कहा। वे संविधान की तीसरी अनुसूची के उल्लंघन का भी इतराया है। इसके परिणामस्वरूप, सुप्रीम कोर्ट ने उन पर 5 लाख रुपए का जुर्माना लगाया है और उन्हें 4 हफ्ते की अवधि दी है इसे भरने के लिए।
जुर्माना लगाने के बाद सुप्रीम कोर्ट की ओर से यह भी कहा गया है कि याचिकाकर्ता को उसकी जनहित याचिका को पब्लिसिटी पाने का ऐसा ओछा तरीका बताने के लिए उसे जुर्माना भरना पड़ेगा।
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले में ये स्पष्ट हो गया है कि न्यायिक प्रणाली नियमों का पालन करने पर खड़ी रहेगी और उसे शपथों का सख्त अनुपालन करने के लिए याचिकाकर्ताओं के ऊपर जुर्माना भी लगा सकती है।
हमारे समाज में अदालतों का एक महत्वपूर्ण स्थान है और वहां कार्यरत करने वाले वकील अपने दायित्वों को पालन करने के साथ साथ न्याय प्रणाली के नियमों का भी पालन करने के लिए जिम्मेदार हैं। ये फैसला सुप्रीम कोर्ट के तहत लिया गया है जो हमारे समाज के लिए एक महत्वपूर्ण पुख्ता संस्था है। वहां से आए ऐसे फैसले हमारे न्याय प्रणाली की काशनी और निष्ठा को दर्शाते हैं।
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