महिलाओं में स्तन कैंसर की संख्या तेजी से बढ़ रही है। यह बीमारी देश के स्तन कैंसर मरीजों की संख्या की चिंता का कारण बन गई है। एक ताजगी रिपोर्ट के अनुसार, भारत में स्तन कैंसर के मामलों में महिलाओं की आवृत्ति दर पिछले दस सालों में 20 प्रतिशत से अधिक बढ़ी है।
स्तन कैंसर के खतरे का ऐलान करने वाले अन्तर्राष्ट्रीय सूचकांक “वैश्विक स्तन कैंसर पहल” (जीबीसीआइ) ने भी स्तन कैंसर की संख्या में वृद्धि को चिंता जताई है। यह रिपोर्ट निर्धारित करती है कि भारत में महिलाओं को स्तन कैंसर के खतरे के बारे में जगरूक होना चाहिए।
दुखद तथ्य यह हैं कि देश में स्तन कैंसर के 71 प्रतिशत मामले एडवांस स्टेज में होते हैं। जिसका मतलब है कि इन महिलाओं के लिए उचित इलाज की पहुंच मुश्किल हो सकती है। वैश्विक औसत यह है कि स्तन कैंसर की इसमेंत 130 दिन का समय लगता है।
एक और चिंता की बात यह है कि भारत में स्तन कैंसर से पीड़ित महिलाओं की पांच वर्ष जीवित रहने की दर बहुत कम है। इस बारे में एक रिपोर्ट ने खुलासा किया है कि भूटान, श्रीलंका, मलेशिया और इंडोनेशिया की महिलाएं स्तन कैंसर से पीड़ित मरीजों की पांच वर्ष जीवित रहने की दर भारत से अधिक है।
भारत में ऐसे मरीजों की पहचान की प्रक्रिया भी चिंताजनक है। सिर्फ 29 प्रतिशत महिलाओं की स्तन कैंसर की पहचान पहले और दूसरे चरण में हो पाती है, जबकि इस तरह के चरणों के बाद बचे हुए 71 प्रतिशत मरीजों की पहचान तीसरे और चौथे चरण में होती है।
एक आश्चर्यजनक वैचारिक जानकारी यह है कि स्तन कैंसर से प्रभावित मरीजों की पांच वर्ष जीवित रहने की दर मात्र 51 प्रतिशत है। इसका मतलब है कि स्तन कैंसर से जूझ रही महिलाओं के लिए उचित और समय पर इलाज की जरूरत है।
भारत में एचपीवी वैक्सीन की उपलब्धता भी है, जो कि सर्विकल कैंसर को रोकने में मददगार हो सकती है। पुणे स्थित सीरम इंस्टीट्यूट आफ इंडिया ने वैक्सीन का विकास किया है और इसे 2024 में भारत के राष्ट्रीय टीकाकरण कार्यक्रम में शामिल किया जाएगा। इससे यह उम्मीद की जा रही है कि स्तन कैंसर के मरीजों में संख्या में कमी आएगी और इलाज की पहुंच में सुधार होगा।
महिलाओं की स्वास्थ्य की जिम्मेदारी बेहद महत्वपूर्ण है और स्तन कैंसर के मामलों में एक जगरूकी आवश्यकता है। स्वस्थ जीवनशैली, नियमित तरीके से स्क्रीनिंग कराना और उचित इलाज की जरूरत पर ध्यान देना चाहिए। जीवन के एक अनमोल उपहार को खोने से पहले, स्तन कैंसर के खतरों के विरोध में संघर्ष करना आवश्यक है।
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