1. बाजार नियामक सेबी द्वारा पुरानी प्रक्रिया में बदलाव करने के बाद, ब्रोकर्स को कई दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है।
2. नए नियमों के कारण ब्रोकर्स ने सेबी को अपनी शिकायतें दर्ज करवाई हैं।
3. अब ब्रोकर्स को अपने क्लाइंट्स के पैसों को भेजने के लिए एक लंबी प्रक्रिया को पालन करना पड़ता है।
4. इसके लिए ब्रोकर्स को अधिक मैनपावर और पूंजी लगानी की आवश्यकता होती है।
5. ब्रोकर्स के लिए यह प्रक्रिया टाइम कट-ऑफ और रीजन कोड की समस्या का पैदा कारण बन सकती है।
6. नए नियमों के अलावा, इसके कारण ब्रोकर्स को 10 करोड़ रुपये से ऊँचा नकदी में रखने की जरूरत होती है।
सेबी ने अपनी प्रक्रिया में बदलाव करते हुए, ब्रोकर्स को क्लाइंट के पैसों को क्लियरिंग कॉरपोरेशन के पास भेजने और इसे क्लाइंट के पास लौटाने की नई प्रक्रिया को पालन करना पड़ रहा है। नए नियमों के कारण ब्रोकर्स को कई दिक्कतें आ रही हैं और इसके बारे में वे सेबी के पास शिकायत दर्ज कर रहे हैं। ब्रोकर्स की इस समस्या को देखते हुए इसके कारण ब्रोकर्स को अधिक मैनपावर और पूंजी लगानी पड़ रही है। इसके अलावा, यह प्रक्रिया ब्रोकर्स के लिए कट-ऑफ टाइम और रीजन कोड जैसे मुद्दों में दिक्कत पैदा कर सकती है। नए नियमों के अनुसार, ब्रोकर्स को क्लाइंट्स से फ़ंड पहले USCNBA, फिर सेटलमेंट, फिर क्लाइरिंग कॉरपोरेशन, फिर क्लाइंग कॉरपोरेशन से सेटलमेंट, फिर DSCNBA से क्लाइंट्स के खाते में फ़ंड भेजने की लंबी प्रक्रिया करनी पड़ती है। इसके कारण ब्रोकर्स को 10 करोड़ रुपये से ऊँचा नकदी में रखने की जरूरत होती है।