आईडीबीआई बैंक के प्रमोटर एलआईसी ने बैंक की हिस्सेदारी को कम करने की इच्छा जताई है। एलआईसी ने यह निर्णय बैंक-बीमा कारोबार के अधिकतम फायदे उठाने के लिए लिया है। इसके चलते बैंक में एक बड़ी परिवर्तन होने की संभावना है।
इस मामले में एलआईसी के चेयरमैन सिद्धार्थ मोहंती ने बताया कि उनका कोई ऐसा इरादा नहीं है कि वह बैंक से पूरी तरह से बाहर हों। लेकिन उन्होंने साफ किया कि वे बैंक में अपनी हिस्सेदारी बनाए रखना चाहते हैं। वर्तमान में सरकार की हिस्सेदारी बैंक में 45% है और एलआईसी की हिस्सेदारी 49.24% है। ये दोनों मिलकर 60.7% हिस्सेदारी बेचने की सोच रहे हैं।
इसके पहले भी लाइफ इंश्योरेंस कारपोरेशन (एलआईसी) ने बैंक में कुछ हिस्सेदारी कम कर दी थी। इसके बावजूद, एलआईसी के चेयरमैन ने कहा है कि उनका इरादा अभी बैंक से पूरी तरह से बाहर होने का नहीं है।
यह दिलचस्प है कि बैंक-बीमा व्यवस्था एक ऐसी व्यवस्था है जिसमें बैंक शाखाओं के जरिए बीमा उत्पादों को बेचा जाता है। इससे बैंकों को व्यापारिक मार्ग प्रदान होता है और यह उनकी आय को बढ़ाता है। इसका मुख्य उद्देश्य बैंकों को अधिकतम मुनाफे प्राप्त करने में मदद करना होता है। एलआईसी ने अपने इस कदम से बैंक में हिस्सेदारी को कम कर दिया है। इससे बैंक की हिस्सेदारी को 2024 तक पूरी होने की संभावना कम हो गई है।
यह निर्णय सांविधिक दायरे में किया गया है। एलआईसी को इस मामले में सरकार की अनुमति लेनी होगी। यह सभी प्रक्रियाएं संविधान के नियमों और नियमावली के अनुसार संपन्न होगी। इसके बावजूद, बैंक के ग्राहकों को यह तय करने के लिए चिंता की आवश्यकता है कि क्या इस नए कदम से उनका कोई असर पड़ेगा और क्या उन्हें किसी प्रकार की नुकसान उठानी पड़ेगी।
एलआईसी की उछाल जारी होती दिख रही है, जो बैंक के निजीकरण के संकेत मानी जा सकती है। हालांकि, बैंक अधिनियम के अनुसार, इसके जरिए किसी भी तरह की बैंक हिस्सेदारी परिवर्तन के लिए सरकारी मंजूरी की आवश्यकता होती है। इसलिए, अगर एलआईसी अपनी हिस्सेदारी को और बढ़ाना चाहती है, तो इसके लिए वह सरकारी मंजूरी का इंतजार करनी होगी।
इस नये निर्णय के परिणामस्वरूप, बैंक के ग्राहकों को हो सकता है थोड़ी सी परेशानी हो सकती है। इसलिए, उन्हें इससे जुड़े मामलों के बारे में नवीनतम जानकारी का हर समय ध्यान रखना चाहिए। वे चाहें तो बैंक के अधिकारी से संपर्क करके अपने सभी सवालों का जवाब ले सकते हैं।
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